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लेखनी प्रतियोगिता -14-Mar-2022

  



इक समय का सूर्य हूं मैं आज दीपक ढूँढता हूं।
आप कर लो अपने मन की मैं ये लोचन मुंदता हूं।

इक समय की बात है थे रागनी में हम बसे...
आज बस खुद के ही अंतर्मन में देखो गूंजता हूं।

है जवानी आग और नादानियां भी घृत हुई....
फिर भी उत्तेजित हृदय की भाव को मैं फूंकता हूं।

 काश! मैं होकर परिंदा इस गगन को चूमता पर...
आज जुगनू बनके देखो मैं निशाभर घूमता हूं।

एक पैमाना हुई है ज़िंदगी जब दर्द की....
एक घायल मन लिए मैं पत्थरों को पूजता हूं।

फूल का जो पासबानी उम्रभर करता रहा।
मैं हूं शामिल भीड़ में फिर कंटकों को घूरता हूं।

©®दीपक झा रुद्रा

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9 Comments

Shrishti pandey

15-Mar-2022 05:58 PM

Nice one

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Seema Priyadarshini sahay

15-Mar-2022 05:58 PM

बहुत खूबसूरत

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Punam verma

15-Mar-2022 09:14 AM

Nice

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